Saturday 3 August 2013

मेरा नाम क्या था?

मेरा नाम क्या था?
मे भी खुद को भूल गया..
मुझे शायद गर्व है मुझपे..
क्यूँ की मे खुश हूँ अपने घर से..
वो गलियो की चहल-पहेल
वो बातो मे देश –सड़क
वो शोर की उथल- पुथल
मेरी ज़िंदगी मे घुल गया.
मेरा नाम क्या था?
मे खुद भी मुझको भूल गया..

नही शौक किसी शौक का..
ना होश किसी बोझ का..
हवा की जैसे उड़ती पतंग..
छोटी गुदगुदी से नाचे मन..
मालूम नही क्या होता घमंड..
खुश है जेब मेरी थोड़े से वज़न से
नीले गगन से
रहे ना किसी बात की फिकर
मिला मुझे वक़्त का समुंदर
मेरी पहचान से मेरा चेहरा छूट गया

मेरा नाम क्या था?
मे खुद भी मुझको भूल गया

खीज़र्

1 comment: